मित्रता को किसी दिन से नहीं बांधा जा सकता, मित्रता कृष्ण सुदामा जेसी होनी चाहिए जहा अपने दोस्त तकलीफ में हे पता चलते ही बगेर किसी को बताये मदद करे और उसके स्वाभिमान की रक्षा भी करे। सुदामा। हमने कृष्ण सुदामा की कहानी सुनी हे जिसमे ये भी सुना हे की जब कृष्ण सुदामा सांदीपनी ऋषि के आश्रम में अभ्यास करते थे तब जंगल गये लकड़ी बीनने उस वक्त गुरुमाता ने रस्ते में खाने के लिए भोजन दिया था और श्री कृष्ण के भाग का भी भोजन सुदामा खा गये थे पर ये बहुत कम लोगो को पता हे की सुदामा को ये पता चल चूका था जब भोजन दिया जा रहा था तब दरिद्रता का योग था और जो वो भोजन खाता उसके घर भी दरिद्रता आएगी। सुदामा ने इस लिए वो भोजन खा गये थे ताकि उनके मित्र के घर दरिद्रता न आये, मित्र को बचा लिया।इसीलिए कहा गया हे मित्र ऐसा ढूँढिये ढाल जेसा होए ,दुःख में हमेशा आगे रहे सुख में पीछे होय ! श्री कृष्ण। कृष्ण को पता था की सुदामा ने अजाचक व्रत लिया था यानि कुछ भी हो / जरूर पड़े किसीके सामने हाथ नहीं फैलाना भले मृत्यु क्यों न आ जाये। जब कृष्ण और सुदामा का मिलन हुआ तो अन्तर्यामी श्री कृष्ण ने उनके माथे पर लिखा श्री क्षय पढ़ा
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