देश में गणेश महोत्सव हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता हे और विसर्जन भी होता हे और उसके बाद की जो तस्वीरे हमारे सामने आती हे वो बहुत ठेस पहुचती हे ,गणेश जी जिनकी हम पूजा करते हे विसर्जन के बाद उनकी मुर्तिया क्षत विक्षत हालत में मानो हमे कह रही हे क्या यही हे तुम्हारी भक्ति ?
इसका स्टिक और पर्यावरण के पहेलु से भी उपाय हे गोबर से बनाये गणेश जी गोबर वेसे भी पवित्र माना गया हे (निचे दिया धार्मिक महत्त्व पढ़े एक दो बार )और उससे बनी मुर्तिया जब घुल जाएगी तो फायदा देगी ही .जबकि प्लास्टरऑफ़ पेरिस नुकशान करता हे और गंदे पानी में जहा हम पैर रखना भी नहीं चाहते गणेश जी का विसर्जन करते हे !
धार्मिक महत्त्व : -
पाठा एवं शुभ अवसरों पर गाय के गोबर से स्थान को शुद्घ करते हैं। कहते हैं जिस स्थान को नियमित गाय के गोबर से लीपा जाता है वहां धरती पवित्र रहती है और घर में लक्ष्मी का वास रहता है।इस संदर्भ में एक कथा है कि सभी देवी देवताओं ने गाय के विभिन्न अंगों में अपना स्थान प्राप्त कर लिया। इसके बाद देवी लक्ष्मी गाय के समक्ष आई। देवी लक्ष्मी ने कहा मैं तुम्हारे शरीर में वास करना चाहती हूं।
गौ माता ने लक्ष्मी से कहा, मेरे शरीर के सभी अंगों पर देवताओं का वास हो चुका है। आप चाहें तो मेरे गोबर में वास कर सकती हैं। देवी लक्ष्मी ने गौ माता की यह बात स्वीकार कर ली और गोबर में वास कर गईं। इसके बाद से ही गाय के गोबर को पवित्र और लक्ष्मी स्वरुप माना जाने लगा इसीलिए पुराने ज़माने में घरो को इससे लिपा जाता था . (निचे का चित्र देखे )
रामचरित मानस में कहा गया है -
भूकंप कहे गाइ की गाथा। कांपे धरा त्रास अति जाता।।
जा दिन धरा धेनु न होई। रसा रसातल ता छन होई।।
भावार्थ- भूकंप गाय की गाथा ही गा रहा है। जब गौ माता को बहुत कष्ट होता है, तभी पृथ्वी कांपती है। जिस दिन इस धरती पर गाय नहीं होगी, उसी दिन ये रसातल में चली जाएगी।
वैज्ञानिक महत्त्व भी : -
* जब बाल कृष्ण को पूतना ने विषयुक्त दुग्धपान कराया था तो उस विष का दुष्प्रभाव दूर करने के लिए उन्हें गोबर से नहलाया गया था. गोबर में विष को अवशोषित करने के गुण होते है. गोबर का लेप लगा कर फिर स्नान करने से थोड़े समय बाद शरीर से एक अद्भुत सुगंध आती है.
* गोबर में रेडियेशन अवशोषित करने का गुण है.
* गोमय वसते लक्ष्मी- वेदों में कहा गया है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास होता है. गोमय गाय के गोबर रस को कहते है. यह कसैला एवं कड़वा होता है तथा कफजन्य रोगों में प्रभावशाली है. गोबर को अन्य नाम भी है. गोविन्द, गोशकृत, गोपरीषम, गोविष्ठा, गोमल आदि
* अग्रंमग्रं चरंतीना, औषधिना रसवने.
तासां ऋषभपत्नीना, पवित्रकायशोधनं..
यन्मे रोगांश्वशोकांश्व, पापं में हर गोमय.
अर्थात्- वन में अनेक औषधि के रस का भक्षण करने वाली गाय, उसका पवित्र और शरीर शोधन करने वाला गोबर. तुम मेरे रोग और मानसिक शोक और ताप का नाश करो.
* गोबर गणेश की प्रथम पूजा होती है और वह शुभ होता है. मांगलिक अवसरों पर गाय के गोबर का प्रयोग सर्वविदित है. जलावन एवं जैविक खाद आदि के रूप में गाय के गोबर की श्रेष्ठता जगत प्रसिद्द है.
* गाय का गोबर दुर्गन्धनाशक, शोधक, क्षारक, वीर्यवर्धक, पोषक, रसयुक्त, कान्तिप्रद और लेपन के लिए स्निग्ध तथा व्याधि को दूर करने वाला होता है.
गोबर में नाईट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, आयरन, जिंक, मैग्निज, ताम्बा, बोरोन, मोलिब्दनम, बोरेक्स, कोबाल्ट-सलफेट, चूना, गंधक, सोडियम आदि मिलते है.
* गाय के गोबर में एंटीसेप्टिक, एंटीडीयोएक्टिव एवं एंटीथर्मल गुण होता है गाय के गोबर में लगभग 16 प्रकार के उपयोगी खनिज तत्व पाये जाते है.
आर्थिक महत्त्व : -
हर महीनें 10 लाख रुपए कमाती हैं ये गायें..
राजस्थान के झुंझुनू में 117 साल पुरानी ये गोशाला अपने आप में अनूठी है।
- रोजाना मलमूत्र गोशाला के खेतों में पहुंचा दिया जाता है। गायों को गर्मी से बचाने के लिए पूरी गोशाला में सेंट्रलाइज कूलिंग सिस्टम लगा हुआ है।
- 80 सीसीटीवी कैमरे भी लगे हैं। देश की किसी भी कोने में बैठकर वेबसाइट के जरिये गोशाला की गतिविधियां ऑनलाइन देखी जा सकती हैं।
- गोशाला में पूजा अर्चना के लिए नंदी पूजा गृह व गोरधन परिक्रमा स्थल भी बने हुए हैं। गोशाला में वर्तमान में करीब 1000 गाय हैं। इनमें से 160 गाय दूध देती हैं।
- इनसे गोशाला को सालाना सवा करोड़ रुपए की आय होती है। यानी हर महीने करीब दस लाख रुपए का दूध बेचा जाता है।
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धन्यवाद . प्रणाम जी .
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