नरेन्द्र मोदी जी और शंकर सिंह वाघेला जी की 1990 की वो यादगार ट्रेन यात्रा .
आसाम से दो सहेलियाँ रेल्वे में भर्ती हेतु गुजरात रवाना हुइ । रस्ते में एक स्टेशन पर गाडी बदलकर आगे का सफ़र उन्हें तय करना था।जिस प्रकार से ठहराया उसी प्रकार से सफ़र शुरू हुआ। पहली गाड़ी में दो नेता थे उनका बर्ताव तो अच्छा था पर साथ के कुछ समथको का बर्ताव ठीक नहीं था इस वजह से अगली गाड़ी में तो कम से कम सफ़र सुखद हो यह आशा मन में रखकर भगवान से प्रार्थना करते हुए दोनों सहेलियाँ स्टेशन पर उतर गयी और भागते हुए रिजर्वेशन चार्ट तक वे पहुची और चार्ट देखने लगी. चार्ट देख दोनों परेशान और भयभीत हो गयी क्यों की उनका रिजर्वेशन कन्फर्म नहीं हो पाया.मायूस और न चाहते उन्होंने नज़दीक खड़े TC से गाड़ी में जगह देने के लिए विनती की TC ने भी गाड़ी आने पर कोशिश करने का आश्वासन दिया।एक दूसरे को शाश्वती देते दोनों गाड़ी का इंतज़ार करने लगी आख़िरकार गाड़ी आ ही गयी और दोनों जैसे तैसे कर गाड़ी में एक जगह बैठ गए।
अब सामने देखा तो क्या!
सामने दो नौजवान युवक 30-35 आयु के बैठे थे। पिछले भयावह और डरावने सफ़र में हुई बदसलूकी कैसे भूल जाती लेकिन अब वहा बैठने के अलावा कोई चारा भी नहीं था क्यों की उस डिब्बे में कोई और जगह ख़ाली भी नहीं थी।गाडी निकल चुकी थी और दोनों की निगाहें TC को ढूंढ रही थी शायद कोई दूसरी जगह मिल जाये।कुछ समय बाद गर्दी को काटते हुए TC वहा पहुँचे और कहने लगे कही जगह नहीं और इस सिट का भी रिजर्वेशन अगले स्टेशन से हो चूका है कृपया आप अगले स्टेशन पर दूसरी जगह देख लीजिये।यह सुनते ही दोनों के पैरो तले जैसे जमीन ही खिसक गयी क्यों की रात का सफ़र था और पिछले सफर का वो डरावना मंजर अब भी याद था । गाड़ी तेज़ी से आगे बढ़ने लगी जैसे जैसे अगला स्टेशन पास आने लगा दोनों परेशान होने लगी लेकिन सामने बैठे नौजवान युवक उनके परेशानी के साथ भय की अवस्था बड़े बारीकी से देख रहे थे जैसे अगला स्टेशन आया दोनो नौजवान उठ खड़े हो गए और चल दिये अब दोनों लड़कियो ने उनकी जगह पकड़ ली और गाड़ी निकल पड़ी कुछ क्षणों बाद वो नौजवान वापस आये और कुछ कहे बिना निचे सो गए ।
दोनों सहेलियाँ यह देख अचम्भित हो गयी और डर भी रही थी जिस प्रकार सुबह के सफ़र में हुआ उसे याद कर सो गयी। अब मैं बर्थ पर लेटी हुईं यह सोच रही थी कि दोनों नेताओं में कितना अंतर हैं। जहां एक रात पहले हम लोग नेताओं के साथ यात्रा करते हुए इतना डर रही थी, वहीं उस रात इन नेताओं का बर्ताव शालीन और बेहद प्रभावित था व खुद को सुरक्षित महसूस कर रही थी ।सुबह चाय वाले की आवाज़ सुन नींद खुली दोनों ने उन नौजवानों को धन्यवाद कहा तो उनमे से एक नौजवान ने कहा " बेहेनजी गुजरात में कुछ मदद की जरुर पड़े तो बताना " मेरे घर के दरवाजे खुले हे।
स्टेशन आने के पहले मैंने अपनी डायरी निकालकर उन दोनों के नाम पूछे क्योंकि उन्होंने जो कुछ किया था उससे नेताओं के बारे में मेरी राय पूरी तरह से बदल कर रख दी थी। दोनों ने अपना नाम और पता बुक में लिखाया और "हमारा स्टेशन आ गया है"ऐसा कह उतर गए !
लेखिका को इस बात का जरा भी इल्म नहीं था कि वो जिन दो राजनेताओं का जिक्र अपने लेख में कर रही हैं, वो आने वाले दिनों में बहुत मशहूर हो जाएंगे।जानते हे वे दो लोगो कोन थे ?लेखिका अपनी डायरी में जो नाम लिखे थे वे थे शंकरसिह वाघेला जो 1996 में गुजरात के मुख्य मंत्री बने और दुसरे का नाम था नरेन्द्र दामोदर दास मोदी। 2001 में गुजरात राज्य के १४वें मुख्य मंत्री बने । उन्हें उनके सराहनीय काम के कारण गुजरात की जनता ने लगातार ४ बार (२००१ से २०१४ तक) मुख्य मंत्री चुना। और आज वो देश के प्रधान मंत्री हे और पूरी दुनिया में आज वो छाये हुए हे ।
यह घटना जिनके साथ हुई उनका नाम लीना शर्मा हे फ़िलहाल General Manager of the Center for Railway Information System, Indian Railways, New Delhi में कार्यरत है और यह लेख The Hindu अंग्रेजी पेपर में पेज नं 1 पर "A train journey and two names to remember "इस नाम से दिनांक 1 जुन 2014 को प्रकाशित हुआ है।
# शायद इसीलिए किसीने कहा हे #
इत्र से महक ना कोई बड़ी बात नहीं ,
मजा तो तब हे जब खुशबु तेरे किरदार से आये !
लीना ने इस अनुभव को 1995 में असम के अखबारों में लिख भेजा। वे बताती है कि ऐसा करके मैं असम की दो बेनो(sister) द्वारा उन गुजरातियों के प्रति कृतज्ञता जताना चाहती थीं। जब 1996 में शंकर सिंह वाघेला व 2001 में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अब जब प्रधानमंत्री बनने के बाद मैं मोदी जी को टीवी पर देखती हूं तो मेरे मन में वह खाना, उन दोनों का शिष्टाचार और घर से दूर रात में उनके साथ यात्रा करते समय सुरक्षा की अनुभूति ताजी हो जाती है।
तो क्या आप अब भी सोचते है की आपने गलत प्रधानमंत्री चुना है?
The Hindu का लिंक जहा ये खबर छपी थी -
धन्यवाद . प्रणाम जी .
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